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गणगौर क्यों मनाई जाती है – गणगौर की कहानी हिंदी में
]क्या आप जानते हैं गणगौर क्यों मनाया जाता है शायद आप में कुछ लोग ऐसे हो जिन्हें की इस पवित्र पर्व के विषय में पता हो. मैं आपको बता देना चाहता हूँ की बाकी के भारतीय पर्वों की तरह गणगौर भी एक खूब पावन पर्व होता है. वैसे तो भारत को पर्वों का देश कहा जाता है क्योंकि भारत में अनेकों पर्व धूम धाम से मनाये जाते हैं.
खासकर हिन्दू धर्म में इतने पर्व है कि कोई अंदाज़ नहीं लगा सकता. क्योंकि कुछ पर्व क्षेत्रीय प्रकार के होते हैं जिन्हें सभी क्षेत्र में न मनाकर कुछ सीमित क्षेत्रों में मनाया जाता है. इसी तरह गणगौर एक हिन्दू पर्व है लेकिन इसे सभी हिन्दू नहीं मनाते है. इस पर्व को मुख्य रूप से राजस्थान के लोगों के द्वारा मनाया जाता है. गणगौर की बात करें तब यह एक हिन्दू धर्म का पर्व है जिसे मुख्य रूप से राजस्थान में मनाया जाता है. वहीँ इस पर्व को मध्यप्रदेश के भी कुछ क्षेत्रों में भी मनाया जाता है.
देखा जाये तो गणगौर है तो एक पर्व ही, वहीँ गणगौर से जुडी ऐसे बहुत से बातें हैं जिनके विषय में शायद आपको कुछ भी मालूम न हो. इसलिए मैंने सोचा की क्यूँ न आप लोगों ये बताया जाये कीगणगौर क्यों मनाई जाती हैतो फिर चलिए शुरू करते हैं और इस पर्व के विषय में और अधिक जानकारी प्राप्त करते हैं.
गणगौर प्रेम एवं पारिवारिक सौहाद्र का एक पावन पर्व है, जिसे की हिन्दुवों द्वारा मनाया जाता है. गणगौर बना हुआ है दो शब्दों के मिलने से, गण और गौर. इसमें गण शब्द से आशय भगवान शंकर जी से है और गौर शब्द से आशय माँ पार्वती से है.
गणगौर राजस्थान का मुख्य पर्व है और वहां इसकी काफी मान्यता है. इसे राजस्थान में आस्था के साथ मनाया जाता है. इस दिन गणगौर की पूजा की जाती है, लड़कियां एवं महिलाएं शंकर जी एवं पार्वती जी की पूजा करती हैं. गणगौर पर्व से भगवान शंकर और माता पार्वती की कहानी जुड़ी हुई है इसीलिए इस पर्व की हिन्दू धर्म में काफी मान्यता है.
जैसे की मैंने पहले भी कहा है की, गणगौर एक हिन्दू धर्मावलंबियों का पर्व है जो भारत देश में मुख्यतः राजस्थान और मध्यप्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में मनाया जाता है. मान्यता है गणगौर पर्व के पीछे हिन्दू धर्म के भगवान शंकर और मां पार्वती जी की कहानी जुड़ी हुई है. इसीलिये हिन्दू धर्म में गणगौर पर्व in Hindi की मान्यता कुछ अलग ही रूप से है.
गणगौर पर्व कैंसे मनाया जाता है?
गणगौर में गण शब्द से आशय भगवान शंकर जी से है और गौर शब्द से आशय माँ पार्वती से है. यह पर्व 16 दिनों तक लगातार मनाया जाता है. इस पर्व को महिलाएं सामूहिक रूप से 16 दिनों तक मनाती हैं. इस दिन भगवान शिव की और माता पार्वती की पूजा की जाती है.
इस पर्व में जहाँ कुंवारी लड़कियां इस दिन गणगौर की पूजा कर मनपसंद वर की कामना करती हैं, वहीँ शादीशुदा महिलाएं इस दिन गणगौर का व्रतरख अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती है.
इस दिन महिलाएं गणगौर मतलब शिव जी और मां पार्वती की पूजा करते समय दूब से दूध की छांट देते हुए गोर गोर गोमती गीत गाती हैं. नवविवाहित महिलाएं पहला गणगौर का पर्व अपने पीहर आकर मनाती है गणगौर की पूजा में लोकगीत भी गाये जाते हैं जो इस पर्व की शान है.
बहुतों के मन में ये सवाल जरुर आया होगा की आखिर में गणगौर क्यूँ मनाया जाता है? गणगौर पर्व के पीछे मान्यता है कि इस दिन कुंवारी लड़कियां गणगौर की पूजा करती हैं तो उन्हें मनपसंद वर की प्राप्ति होती है और शादीशुदा महिलाएं यदि गणगौर पूजा करती हैं और व्रत रखती है तो उन्हें पतिप्रेम मिलता है और पति की आयु लंबी होती है.
राजस्थान में ये पर्व 16 दिनों तक लगातार धूम धाम से मनाया जाता है. राजस्थानी में कहावत है ‘तीज तींवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर‘ अर्थ है कि सावन की तीज से त्योहारों का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही त्योहारों पर चार महीने का विराम आ जाता है
गणगौर कब मनाया जाता है?
गणगौर पर्व16 दिनों तक लगातार मनाया जाने वाला पर्व है. गणगौर पर्व होली के दूसरे दिन से ही शुरू हो जाता है और होली के बाद 16 दिन तक लगातार मनाया जाता है. गणगौर का पर्व हिंदी कैलेंडर के हिसाब से चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को से मनाना शुरू किया जाता है. पुराणों के अनुसार गणगौर पर्व का प्रारंभ पौराणिक काल से हुआ था और तब से अर्थात कई वर्षों पूर्व से हर वर्ष मनाया जाने वाला पर्व है.
जो महिलाएं गणगौर की पूजा करती है वे महिलाएं अपने पूजे हुए गणगौर को चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वितीया अर्थात होली के दिन किसी नदी या सरोवर जाकर पानी पिलाती है और चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को अर्थात होली के दिन सायंकाल में गणगौर की मूर्ति का विसर्जन कर देती हैं.
गणगौर की कहानी
एक बार की बात है कि भगवान शिव शंकर और माता पार्वती भ्रमण के लिये निकल पड़े, उनके साथ में नारद मुनि भी थे। चलते-चलते एक गांव में पंहुच गये उनके आने की खबर पाकर सभी उनकी आवभगत की तैयारियों में जुट गये। कुलीन घरों से स्वादिष्ट भोजन पकने की खुशबू गांव से आने लगी। लेकिन कुलीन स्त्रियां स्वादिष्ट भोजन लेकर पंहुचती उससे पहले ही गरीब परिवारों की महिलाएं अपने श्रद्धा सुमन लेकर अर्पित करने पंहुच गयी। माता पार्वती ने उनकी श्रद्धा व भक्ति को देखते हुए सुहाग रस उन पर छिड़क दिया। जब उच्च घरों स्त्रियां तरह-तरह के मिष्ठान, पकवान लेकर हाज़िर हुई तो माता के पास उन्हें देने के लिये कुछ नहीं बचा तब भगवान शंकर ने पार्वती जी कहा, अपना सारा आशीर्वाद तो उन गरीब स्त्रियों को दे दिया अब इन्हें आप क्या देंगी? माता ने कहा इनमें से जो भी सच्ची श्रद्धा लेकर यहां आयी है उस पर ही इस विशेष सुहागरस के छींटे पड़ेंगे और वह सौभाग्यशालिनी होगी। तब माता पार्वती ने अपने रक्त के छींटे बिखेरे जो उचित पात्रों पर पड़े और वे धन्य हो गई। लोभ-लालच और अपने ऐश्वर्य का प्रदर्शन करने पंहुची महिलाओं को निराश लौटना पड़ा। मान्यता है कि यह दिन चैत्र मास की शुक्ल तृतीया का दिन था तब से लेकर आज तक स्त्रियां इस दिन गण यानि की भगवान शिव और गौर यानि की माता पार्वती की पूजा करती हैं।
गणगौर व्रत कैसे रखा जाता है?
गणगौर त्यौहार में इसकी व्रत की अलग ही महत्व है.चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रतधारी महिलाएं प्रातः स्नान कर गीले कपड़ों में ही घर के पवित्र स्थान में लकड़ी की बनी टोकरी में जवांरे बोती हैं और इन जवांरो को ही गौरी (मां पार्वती) और ईशर (भगवान शंकर) का रूप माना जाता है.
गणगौर का व्रत रखने वाली महिलाएं सिर्फ रात में एक समय का भोजन करती हैं. जवांरो का विसर्जन होने तक प्रतिदिन दोनों समय गणगौर की पूजा करने के बाद भोग लगाया जाता है.
गणगौर की स्थापना में सुहाग की वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं एवं सुहाग की सामग्री का पूजन कर ये वस्तुएं गौरी जी को अर्पित की जाती हैं. इसके बाद गौरी जी को भोग लगाया जाता है फिर गौरी जी की कथा सुनी जाती है. कथा सुनने के बाद शादीशुदा महिलाएं चढ़ाए हुए सिंदूर से अपनी मांग भरती हैं.
गणगौर पूजा का महत्व
राजस्थान में गणगौर पूजा और व्रत का विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व माना गया है. मान्यता है कि गणगौर की पूजा और व्रत करने वाली महिलाओं को सदा सुहागन का वरदान हैं और कुवांरी लड़कियों को गणगौर पूजा करने से इक्छित वरप्राप्ति होती है.
इस पूजा में 16 अंक का भी विशेष महत्व माना गया है. सबसे पहली बाटो ये पर्व 16 दिनों तक लगातार मनाया जाता है. गणगौर की पूजा में गीत गाते हुए महिलाएं काजल, रोली और मेहंदी से 16-16 बिंदी लगाती हैं. गणगौर में चढ़ने वाले फल व सुहाग के सामान की संख्या भी 16-16 ही रहती हैं. महिलाएं भी इस दिन 16 श्रंगार में नजर आती है.
गणगौर पर्व में पूजा के समय लोकगीत भी गाये जाते हैं. गणगौर पर्व में गाये जाने वाले लोकगीतों को इस पर्व की जान कहते हैं. लोकगीतों के बगैर यह पर्व अधूरा है.
गणगौर क्यों मानते है?
मुझे उम्मीद है की आपको मेरी यह लेख गणगौर क्या है और गणगौर क्यूँ मनाया जाता है जरुर पसंद आई होगी. मेरी हमेशा से यही कोशिश रहती है की को गणगौर कैसे मनाते हैं के विषय में पूरी जानकारी प्रदान की जाये जिससे उन्हें किसी दुसरे sites या internet में उस article के सन्दर्भ में खोजने की जरुरत ही नहीं है.
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