नवरात्रि क्यों मनाई जाती है
नवरात्रि क्यों, कब ,क्यूँ और कैसे मनाएं ??
नवरात्रि(Navratri 2020) यानी कि नौ रातें. शरद नवरात्र (Sharad Navratri) हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक हैं जिसे दुर्गा पूजा (Durga Puja) के नाम से भी जाना जाता है.इस बार शारदीय नवरात्रि 17 अक्टूबर से शुरू होकर 25 अक्टूबर तक है.
हिन्दू धर्म में नवरात्रि का पर्व काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। एक वर्ष में कुल चार बार नवरात्रि का पर्व आता है परन्तु इनमें से माघ और आषाढ़ नवरात्रि गुप्त नवरात्रि होती है। जिनका हिंदू धर्म में सबसे अधिक महत्व है। नवरात्रि के वसंत ऋतु में मनाये जाने के कारण इसे ‘वासंती नवरात्र’ भी कहते हैं। इसके साथ ही इस पर्व का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि नवरात्रि के पहले दिन से हिंदू नववर्ष की शुरुआत भी होती है।जब भी बात नवरात्र की आती है तो हमारा दिमाग पाठ-पूजा, देवी मां की अर्चना-आरती तक ही सीमित रह जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि नवरात्र का त्योहार क्यों मनाया जाता है? इसकी मान्यता क्या है?
सदियों से हम नवरात्र का त्योहार मनाते आ रहे हैं, व्रत रखते आ रहे हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से इस त्योहार को मनाया जाता है। कहीं कुछ लोग पूरी रात गरबा और आरती कर नवरात्र के व्रत रखते हैं तो वहीं कुछ लोग व्रत और उपवास रख मां दुर्गा और उसके नौ रूपों की पूजा करते हैं, लेकिन इस नवरात्र के पीछे असल कहानी क्या है?
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इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा है। महिषासुर नाम का एक बड़ा ही शक्तिशाली राक्षस था। वो अमर होना चाहता था और उसी इच्छा के चलते उसने ब्रह्मा की कठोर तपस्या की। ब्रह्माजी उसकी तपस्या से खुश हुए और उसे दर्शन देकर कहा कि उसे जो भी वर चाहिए वो मांग सकता है। महिषासुर ने अपने लिए अमर होने का वरदान मांगा। महिषासुर की ऐसी बात सुनकर ब्रह्मा जी बोले, ‘जो इस संसार में पैदा हुआ है उसकी मौत निश्चित है। इसलिए जीवन और मृत्यु को छोड़कर जो चाहो मांग लोग।’ ऐसा सुनकर महिषासुर ने कहा,’ ठीक है प्रभु, फिर मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि मेरी मृत्यु ना तो किसी देवता या असुर के हाथों हो और ना ही किसी मानव के हाथों। अगर हो तो किसी स्त्री के हाथों हो।’महिषासुर की ऐसी बात सुनकर ब्रह्माजी ने तथास्तु कहा और चले गए। इसके बाद तो महिषासुर राक्षसों का राजा बन गया उसने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। देवता घबरा गए। हालांकि उन्होंने एकजुट होकर महिषासुर का सामना किया जिसमें भगवान शिव और विष्णु ने भी उनका साथ दिया, लेकिन महिषासुर के हाथों सभी को पराजय का सामना करना पड़ा और देवलोक पर महिषासुर का राज हो गया।
महिषासुर से रक्षा करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के साथ आदि शक्ति की आराधना की। उन सभी के शरीर से एक दिव्य रोशनी निकली जिसने एक बेहद खूबसूरत अप्सरा के रूप में देवी दुर्गा का रूप धारण कर लिया। देवी दुर्गा को देख महिषासुर उन पर मोहित हो गया और उनसे शादी करने का प्रस्ताव सामने रखा। बार बार वो यही कोशिश करता।
देवी दुर्गा मान गईं लेकिन एक शर्त पर..उन्होंने कहा कि महिषासुर को उनसे लड़ाई में जीतना होगा। महिषासुर मान गया और फिर लड़ाई शुरू हो गई जो 9 दिनों तक चली। दसवें दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर का अंत कर दिया…और तभी से ये नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।
कब से शुरु है शारदीय नवरात्रि ?
शारदीय नवरात्रि(Sharad Navratri) को मुख्य नवरात्रि माना जाता है. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह नवरात्रि शरद ऋतु में अश्विन शुक्ल पक्ष से शुरू होती हैं और पूरे नौ दिनों तक चलती हैं. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह त्योहार हर साल सितंबर-अक्टूबर के महीने में आता है. इस बार शारदीय नवरात्रि 17 अक्टूबर से शुरू होकर 25 अक्टूबर तक है. 26 अक्टूबर को विजयदशमी या दशहरा (Vijayadashami or Dussehra) मनाया जाएगा.
शारदीय नवरात्रि की तिथियां
17 अक्टूबर 2020: नवरात्रि का पहला दिन, प्रतिपदा, कलश स्थापना, चंद्र दर्शन और शैलपुत्री पूजन.
18 अक्टूबर 2020: नवरात्रि का दूसरा दिन, द्वितीया, बह्मचारिणी पूजन.
19 अक्टूबर 2020: नवरात्रि का तीसरा दिन, तृतीया, चंद्रघंटा पूजन.
20 अक्टूबर 2020: नवरात्रि का चौथा दिन, चतुर्थी, कुष्मांडा पूजन.
21 अक्टूबर 2020: नवरात्रि का पांचवां दिन, पंचमी, स्कंदमाता पूजन.
22 अक्टूबर 2020: नवरात्रि का छठा दिन, षष्ठी, सरस्वती पूजन.
23 अक्टूबर 2020: नवरात्रि का सातवां दिन, सप्तमी, कात्यायनी पूजन.
24 अक्टूबर 2020: नवरात्रि का आठवां दिन, अष्टमी, कालरात्रि पूजन, कन्या पूजन.
25 अक्टूबर 2020: नवरात्रि का नौवां दिन, नवमी, महागौरी पूजन, कन्या पूजन, नवमी हवन, नवरात्रि पारण
26 अक्टूबर 2020: विजयदशमी या दशहरा
नवरात्रि व्रत के नियम-
अगर आप भी नवरात्रि(Navratri 2020) के व्रत रखने के इच्छुक हैं, तो व्रत रखन के लिए इन नियमों का पालन करना चाहिए.
– नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना कर नौ दिनों तक व्रत रखने का संकल्प लें.
– पूरी श्रद्धा भक्ति से मां की पूजा करें.
– दिन के समय आप फल और दूध ले सकते हैं.
– शाम के समय मां की आरती उतारें.
– सभी में प्रसाद बांटें और फिर खुद भी ग्रहण करें.
– फिर भोजन ग्रहण करें.
– हो सके तो इस दौरान अन्न न खाएं, सिर्फ फलाहार ग्रहण करें.
– अष्टमी या नवमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन कराएं. उन्हें उपहार और दक्षिणा दें.
– अगर संभव हो तो हवन के साथ नवमी के दिन व्रत का पारण करें.
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