शीतलाष्टमी के दिन इसलिए खाते हैं बासी खाना, ऐसे करें पूजा

शीतलाष्टमी के दिन इसलिए खाते हैं बासी खाना, ऐसे करें पूजा

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कैसे करें शीतला अष्‍टमी व्रत, कथा और पूजन?

चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी-अष्टमी को माता शीतला की पूजा और व्रत करने का महत्‍व है. इस दिन को बसौड़ा अष्‍टमी के नाम से भी जाना जाता है.

शीतला माता का व्रत चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी-अष्टमी को होता है. शास्‍त्रों के अनुसार इस पूजा का बहुत महत्‍व होता है और इसे करने से घर रोगों से दूर रहता है. स्कन्दपुराण के अनुसार इस व्रत को चार महीनों में करने का विधान है. इस व्रत पर एक दिन पहले बनाया हुआ भोजन किया जाता है. इसलिए इसे बसौड़ा, लसौड़ा या बसियौरा भी कहते हैं.

शीतलाष्टमी व्रत कथा

एक गांव में बूढ़ी माता रहती थी। एक बार पूरे गांव में आग लग गई। बूढ़ी माता के घर को छोड़कर पूरा गांव जलकर खाक हो गया। यह देखकर सब लोग दंग थे कि पूरे गांव में सिर्फ बूढ़ी माता का ही घर बचा था। सब लोग बूढ़ी माता से पूछने लगे तो उन्‍होंने बताया कि वह चैत्र कृष्‍ण अष्‍टमी को शीतला माता का व्रत रखती थीं। बासी ठंडी रोटी खाती थीं और चूल्‍हा भी नहीं जलाती थीं। शीतला माता की कृपा से उनका घर बच गया और बाकी पूरा गांव जलकर खाक हो गया। माता के इस चमत्‍कार को देखकर पूरा गांव फिर उनकी पूजा करने लगा और तब से शीतला अष्‍टमी का व्रत रखने की परंपरा शुरू हो गई।

शीतला माता का व्रत कैसे करें?

– व्रती को इस दिन प्रातःकालीन नित्‍य कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ व शीतल जल से स्नान करना चाहिए.
– स्नान के बाद ‘मम गेहे शीतलारोगजनितोपद्रव प्रशमन पूर्वकायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धिये शीतलाष्टमी व्रतं करिष्ये’ मंत्र से संकल्प लेना चाहिए.
– संकल्प के बाद विधि-विधान तथा सुगंधयुक्त गंध व पुष्प आदि से माता शीतला का पूजन करें.
– इसके बाद एक दिन पहले बनाए हुए (बासी) खाना, मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी आदि का भोग लगाएं.
– यदि आप चतुर्मासी व्रत कर रहे हो तो भोग में माह के अनुसार भोग लगाएं, जैसे- चैत्र में शीतल पदार्थ, वैशाख में घी और मीठा सत्तू, ज्येष्ठ में एक दिन पूर्व बनाए गए पूए तथा आषाढ़ में घी और शक्कर मिली हुई खीर.
– भोग लगाने के बाद शीतला स्तोत्र का पाठ करें और यदि यह उपलब्ध न हो तो शीतला अष्टमी की कथा सुनें.
– रात्रि में जगराता करें और दीपमालाएं प्रज्ज्वलित करें.

क्‍यों बनाया जाता है बासी खाना

शीतला माता को मुख्‍य रूप चावल और घी का भोग लगाया जाता है। मगर चावल को उस दिन नहीं पकाया जाता है, बल्कि उसे एक दिन पहले ही बनाकर रख लिया जाता है। मान्‍यता है कि शीतला अष्‍टमी के दिन घर का चूल्‍हा नहीं जलता है और न ही घर में खाना बनाया जाता है। इसलिए एक दिन पहले ही यानी शीतला सप्‍तमी पर ही सारा खाना पका लिया जाता है और शीतला अष्‍टमी के दिन बासी खाना ही खाते हैं। मान्‍यता है कि इस दिन के बाद से बासी खाना खाने की मनाही होती है, क्‍योंकि इस व्रत के बाद गर्मियां शुरू हो जाती हैं। गर्मियों में बासी खाने से बीमार होने का खतरा रहता है।

पूजा का मुहूर्त

शीतला अष्टमी के दिन पूजा का मुहूर्त सुबह 6 बजकर 41 मिनट से शाम 6 बजकर 21 मिनट तक रहेगा। इस तरह पूजा की अवधि लगभग 12 घंटे तक रहेगी। अष्टमी तिथि की शुरूआत 9 मार्च 2018 को सुबह 3 बजकर 44 मिनट से 10 मार्च को सुबह 6 बजे तक रहेगी।

शीतला देवी का रूप

शीतला माता के हाथ में झाड़ू और कलश रहता है। झाड़ू सफाई का प्रतीक है और यह लोगों को सफाई के प्रति जागरूक करता है। साथ ही इनके हाथ में कलश भी होता है जिसमें 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के हिसाब से शीतला माता चेचक और खसरा की देवी हैं। उनके आशीर्वाद से ये रोग दूर हो जाते हैं। शक्ति के दो रूप माने जाते हैं देवी दुर्गा और देवी पार्वती। शीतला माता को शक्ति के इन दोनों रूपों का अवतार माना जाता है।

भोग की विधि

शीतलाष्टमी के दिन माता को भोग लगाने के लिए बासी खाना तैयार किया जाता है जिसे बसौड़ा भी कहा जाता है। इस दिन बासी खाना माता को नैवैद्य के रूप में चढ़ाया जाता है जिसे बाद में भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन के बाद बासी खाना बंद कर देना चाहिए। शीतलाष्टमी के दिन माता शीतला को भोग लगाने के बाद घर में चूल्हा नहीं जलता। परिवार के सभी सदस्य वही प्रसाद खाकर ही पूरा दिन बीताते हैं। शीतला माता की पूजा विशेष रूप से बसंत और ग्रीष्म ऋतु में होती है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ की अष्टमी को शीतला मां की पूजा का विधान है।

 

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