यूं ही नहीं गूंजती किल्कारीयां,

यूं ही नहीं गूंजती किल्कारीयां,
घर आँगन के हर कोने मे,
जान हथेली पर रखनी पड़ती है,
‘ माँ ‘ को ‘ माँ ‘ होने मे।

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